युवाओं ने जाना श्रीनगर में स्थापित प्राचीन मंदिरों का इतिहास

श्रीनगर। गढ़वाल वॉक्स के अध्याय-3 के अंतर्गत शहरवासियों को ब्राह्मण मोहल्ला स्थित मंदिरों की ऐतिहासिकता पौराणिकता की जानकारी दी गयी। रविवार को गढ़वाल वाक्स के सदस्यों द्वारा कार्यक्रम की शुरुआत प्राचीन हनुमान मंदिर से की गई। मौके पर युवाओं ने श्रीनगर के प्राचीन मंदिर के इतिहास के बारे में बताया। इस मौके पर इतिहासविद् कमल सिंह रावत व संस्कृतिकर्मी अभिषेक बहुगुणा ने बताया कि प्राचीन हनुमान मंदिर को 18वीं शताब्दी में राजस्थानी शैली में निर्मित किया गया था।बताया कि 1894 की आपदा के समय इसे मूल स्थान से उठाकर नये श्रीनगर में स्थापित किया गया।
शहर के प्रतिष्ठित गैरोला परिवार ने गैरोला मठ में इसकी स्थापना के लिए जगह दी थी। रावत ने बताया कि गैरोला मठ की दीवारों पर अंकित तिथि के अनुसार इसकी स्थापना 1905 में की गयी थी। गैरोला परिवार द्वारा निर्मित इस मंदिर का निर्माण भी पुराने श्रीनगर से लाए गए पत्थरों से किया गया था। ये मंदिर भी त्रिरथ शैली में है लेकिन किसी व्यक्ति विशेष की स्मृति में निर्मित होने के कारण यहां ज्यादा नक्काशी या प्रतिमाएं नहीं बनाई गयी हैं। इसके बाद अगले पड़ाव चुन्या मुन्या भैरव मंदिर पहुँचे। रावत ने बताया कि पूर्व में इसे गोरखनाथ अखाड़ा के नाम से जाना जाता था। यह स्थल सत्यनाथी संप्रदाय के साधुओं का विश्राम स्थल रहा है और आज भी साधुओं के लिए भोजन व ठहरने की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे केदार मोहल्ला, कमलेश्वर क्षेत्र में दबा हुआ मिला था। मान्यता है कि उस समय के नाथ संप्रदाय के महंत को स्वप्न में भैरवनाथ जी ने दर्शन देकर स्थान का संकेत दिया जहाँ वे समाधिस्थ थे। बताया कि इसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में भी आया है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से कालसर्प दोष का निवारण होता है। इस मौके पर मौजूद लोगों ने गढ़वाल वॉक्स को एक प्रशंसनीय पहल बताया, जो नई पीढ़ी को शहर के समृद्ध इतिहास से जोड़ रही है। संयोजक प्रिंस गिरि ने बताया कि  इस पहल का उद्देश्य लोगों को गढ़वाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत से जोड़ते हुए उन्हें समृद्ध अनुभव देना है।

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